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प्र सू म॒हे सु॑शर॒णाय॑ मे॒धां गिरं॑ भरे॒ नव्य॑सीं॒ जाय॑मानाम्। य आ॑ह॒ना दु॑हि॒तुर्व॒क्षणा॑सु रू॒पा मि॑ना॒नो अकृ॑णोदि॒दं नः॑ ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra sū mahe suśaraṇāya medhāṁ giram bhare navyasīṁ jāyamānām | ya āhanā duhitur vakṣaṇāsu rūpā mināno akṛṇod idaṁ naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। सु। म॒हे। सु॒ऽश॒र॒णाय॑। मे॒धाम्। गिर॑म्। भ॒रे॒। नव्य॑सीम्। जाय॑मानाम्। यः। आ॒ह॒ना। दु॒हि॒तुः। व॒क्षणा॑सु। रू॒पा। मि॒ना॒नः। अकृ॑णोत्। इ॒दम्। नः॒ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:42» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यः) जो मनुष्य (वक्षणासु) बहती हुई नदियों के निमित्त (दुहितुः) कन्या के (रूपा) सुन्दर रूपों (आहनाः) और जो सब और से ताड़ित होती उनका (मिनानः) मान करता हुआ (नः) हम लोगों को (इदम्) इस वर्त्तमान सुख में पाये हुए (अकृणोत्) करे उसके साथ मैं (महे) बड़े (सुशरणाय) उत्तम आश्रय के लिये (नव्यसीम्) अत्यन्त नवीन (जायमानाम्) प्रसिद्ध (मेधाम्) उत्तम बुद्धि और (गिरम्) वाणी को (प्र, सू, भरे) उत्तम प्रकार धारण करता हूँ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! समान रूपवाली कन्या को देखके ही उसका सदृश पति कराने के समान बुद्धि और शिक्षित वाणी को बढ़ाय के गृहाश्रम से उत्पन्न हुए सुख को सब मनुष्यों के लिये आप लोग प्राप्त कराओ ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यो मनुष्यो वक्षणासु दुहितू रूपा आहना मिनानो न इदं प्राप्तानकृणोत्। तेनाहं महे सुशरणाय नव्यसीं जायमानां मेधां गिरं च प्र सू भरे ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (सू) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (महे) महते (सुशरणाय) शोभनायाऽऽश्रयाय (मेधाम्) प्रज्ञाम् (गिरम्) वाचम् (भरे) धरामि (नव्यसीम्) अतिशयेन नूतनाम् (जायमानाम्) प्रसिद्धाम् (यः) (आहनाः) या आहन्यन्ते ताः (दुहितुः) कन्यायाः (वक्षणासु) वहमानासु नदीषु (रूपा) सुन्दराणि रूपाणि (मिनानः) मानं कुर्वाणः (अकृणोत्) कुर्यात् (इदम्) वर्त्तमानं सुखम् (नः) अस्मान् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा सरूपां दुहितरं दृष्ट्वैतस्याः सदृशं पतिं कारयित्वेव प्रज्ञां शिक्षितां वाचं वर्द्धयित्वा गृहाश्रमजन्यं सुखं सर्वान् मनुष्यान् यूयं प्रापयत ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! समान रूप असलेल्या कन्येला तसाच पती निवडा व समान बुद्धी व सुसंस्कृत वाणी वर्धित करून सर्व माणसांना गृहस्थाश्रमाचे सुख प्राप्त करवून द्या. ॥ १३ ॥